सोचती हूँ

सोचती हूँ कभी वो दिन तो आएगा जब बैठी रहूँगी तेरी बाँहों में चुप चाप, आँखें बंद करके होंठों पर मुस्कान चेहरे पर सुकून लेकर   तेरे काँधे पर सिर अपना रखकर तेरे हाथों की गर्मी अपने हाथों में महसूस करके पास तेरे बैठी रहूँगी घंटों तक   सोचती हूँ कभी तो मिल पाऊँगी जब कभी भी तुम पुकारोगे मैं भागी चली आऊँगी कभी तो ख़त्म होगी ये दूरी शायद हमारी कहानी अब ना रहेगी अधूरी  

कहने को तुम दूर हो

ये बारिश नहीं ये तुम ही हो जो मुझ तक ठंडक पहुँचा रही  ये धूप नहीं ये तुम ही हो जो मेरे गालों को सहला रही  ये हवा नहीं ये तुम ही हो  जो मेरे कानों  में कुछ कह रही    बस कहने को तुम दूर हो  तुम हो मेरे पास यहीं कहीं    मेरे हर लफ़्ज़ में तुम  अल्फ़ाज़ में तुम  हर उस अनकही बातों में तुम  मेरे कहानी में तुम  हर कविता में तुम    बस कहने को तुम दूर हो  तुम हो मेरे पास यहीं कहीं    सुबह की रोशनी  रात के सितारे  याद दिलाती है तुम्हारी