सोचती हूँ

सोचती हूँ कभी वो दिन तो आएगा जब बैठी रहूँगी तेरी बाँहों में चुप चाप, आँखें बंद करके होंठों पर मुस्कान चेहरे पर सुकून लेकर   तेरे काँधे पर सिर अपना रखकर तेरे हाथों की गर्मी अपने हाथों में महसूस करके पास तेरे बैठी रहूँगी घंटों तक   सोचती हूँ कभी तो मिल पाऊँगी जब कभी भी तुम पुकारोगे मैं भागी चली आऊँगी कभी तो ख़त्म होगी ये दूरी शायद हमारी कहानी अब ना रहेगी अधूरी