है माँ दुर्गा, तुम भी तो नारी थी
अकेली ही असुरों पे भारी थी,
महिसासुर ने जब उपहास किया
तुमने उसका सर्वनाश किया,
आज भी कुछ बदला नहीं
वो असुर ही है इंसान नहीं,
यही प्रलय है यही अंत है
यहाँ बहरूपी राक्षस दिखते संत है,
क्यूँ हो रही है इतनी यातना मासूमों पे
क्यूँ असुर भारी पर रहे है इंसानो पे,
कैसे रहे हम जीवित ऐसी महामारी में
क्यूँ नहीं तुम आ जाती हर नारी में,
तुम क्यूँ नहीं समझ रही
तुम्हारे रूप की यहाँ कोई इज़्ज़त नहीं,
है माँ दुर्गा, जागो अपनी निद्रा से
इंसानियत ख़त्म हो गयी दुनिया से,
या तो हमारी भी शक्ति जगा दो
या तो सुरक्षित अपने पास बुला लो
Very nice Rashi. The last lines so effective.
Thankyou so much 🙂